एक कथा आती है ,विष्णु अवतार वामन , जब तीनो लोक पैर से नाप रहे थे | तो जब वह स्वर्गलोक पहुचे तो ब्रम्हा ने अपने कमंडल के किसी जल से उनके पैरो को धोया तो गंगा का जन्म हुआ ||
एक कथा यह भी आती है , कि शिव का गाना सुनकर विष्णु पसीने पसीने हो गए उससे गंगा का जन्म हुआ |
गंगा स्वभाव से चंचल व विनोदी थी , तथा साथ ही वह नृत्य व गायन में निपुण थी , एक बार स्वर्ग में जब सभी देवता उनका नृत्य देख रहे थे | वहा महर्षि दुर्वासा भी थे , जो थोड़े व अस्त -व्यस्त कपड़ो में थे , एक हवा के झोके से उनके वस्त्र उड़ गए , जिस पर सभी उनसे परिचित थे | वे अपना सिर घुमा लिए व शांत रहे , परन्तु गंगा हँस पड़ी , जिससे क्रोधित होकर दुर्वासा ने उन्हें शाप दिया कि तुम स्वर्ग में रहने लायक नहीं हो , जाओ तुम पृथ्वी पर नदी बन कर रहोगी |
गंगा पृथ्वी पर नहीं आना चाहती थी , गंगा के क्षमा याचना करने पर ऋषि ने उन्हें धरती पर सबसे पुण्य पवित्र व पाप हरने व मोक्षदायिनी का वरदान दिया |
राजा सगर भगवान राम व उनके पिता दशरथ व भागीरथी के पूर्व हुए थे , या इनके पहले हुए थे |
उनकी कोई संतान न थी | तब उन्होंने अपनी दोनों रानिया केशनि व सुमति के साथ हिमालय पर जाकर पुत्र हेतु तपस्या किये तो ब्रम्हा के पुत्र महर्षि भृगु ने आकर रानियों को इच्छा अनुसार वरदान दिया एक रानी को एक पुत्र का तथा दूसरी को इच्छानुसार 60 हजार परन्तु अभिमानी पुत्र पैदा होने का वरदान दिया ,|
समय अनुसार पहली रानी को एक पुत्र हुआ तथा दूसरी रानी को एक कद्दू हुआ , जो जन्म के बाद फट गया राजा उस कद्दू को फेकने जाते है | तो आकाशवाणी होती है , राजा इन कद्दू के 60 हजार बीजो को घी व औषधीय जार में रखो तुम्हे 60 हजार पुत्र प्राप्त होगे | ( वर्तमान में शायद यही टेस्ट tube baby पद्धति हो )
समय अनुसार राजन को 60 हजार, सीधे एकदम युवा पुत्र मिलते है ||
बाद में राजा सगर चक्रवर्ती होने के लिए अश्वमेध यज्ञ करते है , उनका यश प्रताप चारो दिशाओ में फ़ैल जाता है , उनके तप पराक्रम से देवराज इंद्र भी भयभीत हो जाते है | वे अश्वमेध यज्ञ के घोड़े को अपने साथ ले जाते है , अचानक उन्हें कपिल ऋषि तपस्या करते दिखते है | बड़ी चोरी से वे घोड़े को कपिल ऋषि के आश्रम में बाध देते है |
उधर राजा सगर के 60 हजार पुत्र घोड़े की खोज में आकाश- पातल एक कर देते है | अंत में घोडा उन्हें कपिल ऋषि के आश्रम में मिलता है | वे तपस्यारत कपिल ऋषि को चोर व न जाने क्या -क्या कह कर चिल्लाने लगते है |
तमतमाए कपिल ऋषि अपनी आँखे खोलते है और क्रोधाग्नि से 60 हजार सगर पुत्रो को जला कर भस्म कर देते है | कपिलमुनि के कोप से सगर के 60 हजार पुत्र धरती पर ही भटकने को बाध्य हो जाते है , उन्हें मुक्ति या स्वर्गलोक नहीं जा सकते थे |
जब यह बात सगर व उनके पौत्र अंशुमान को पता चली तो उन्होंने कपिल ऋषि की पूजा अर्चना व बहुत स्तुति की तो कपिल ऋषि ने कहा चूँकि ये मेरे क्रोधाग्नि में भस्म हुए है , अतः इन्हे कोई अन्य नदी या जल से तारण मुक्ति नहीं मिल सकती , इसके लिए तुम्हे स्वर्ग से गंगा नदी धरती पर लानी होगी |
राजा सगर राजगद्दी अपने पौत्र अंशुमान को सौपकर गंगा को धरती पर लाने तपस्या करने चले गए परन्तु वे असफल रहे |
फिर उनके पौत्र अंशुमान अपने पुत्र दिलीप को राजगद्दी सौप गंगा को धरती पर लाने की तपस्या पर चले गये ,परन्तु असफल रहे |
फिर उनके पुत्र दिलीप भी तपस्या कर गंगा को धरती पर लाने में असफल रहे ,
| तब दिलीप के पुत्र भगीरथ घोर तपस्या करते है , व ब्रम्हा प्रकट होकर कहते है , विष्णु पुत्री गंगा का वेग आकाश से धरती पर उतरने पर धरती सह नहीं पायेगी अतः इसके वेग को केवल शिव ही रोक सकते है |
अतः इसके लिए शिव की तपस्या करो तब भागीरथ एक अंगूठे पर खड़े होकर विकट घोर शिव की तपस्या करते है | शिव , तपस्या से प्रसन्न होकर गंगा के वेग को रोकने के लिए तैयार हो जाते है |
अतः गंगा स्वर्ग से सीधे घोर नाद व वेग से धरती पर उतरती है | उनका लक्ष्य शिव को बहा देना होता है , परन्तु गंगा, शिव की जटावो में उलझ कर रह जाती है |
शिव उनके वेग को थाम देते है |
फिर शिव की जटा से सात (7 ) धाराए फूटती है | एक धारा भागीरथ के पीछे पीछे चलती है |
चलते - चलते ऋषि जन्हु का आश्रम पड़ता है , वहा वे तप कर रहे थे , गंगा को ऋषि से उपहास सुझा उन्होंने उनके यज्ञ -आश्रम व अन्य सामग्री को डुबो दिया , ऋषि की आँखे खुली तो अपने तपोबल से सब जान लिया व उन्होंने गंगा को पी लिया , गंगा जी अब ऋषि जन्हु के पेट में कैद हो चुकी थी , व चाहकर भी नहीं निकल सकती थी |
इधर जब भागीरथ जी ने पीछे मुड़कर देखा तो गंगा पीछे कही नहीं थी |
वो दौड़े -दौड़े गंगा को खोजते ऋषि जन्हु के आश्रम गए व ऋषि से माफ़ी व अनुनय विनय व आराधना किया तो ऋषि जन्हु गंगा को कान से निकाल कर आज़ाद कर किया |
तब गंगा ने भी जीवन में कभी शरारत नहीं करने का वचन दिया | तब से गंगा का एक नाम जान्हवी भी पड गया | फिर गंगा भागीरथी जी के पीछे -पीछे कपिल ऋषि के आश्रम तक गयी , जहा भागीरथी के 60 हजार पूर्वज राख बने पड़े थे |
गंगा के स्पर्श से वे मुक्त होकर स्वर्ग चले गये | भागीरथ के इन्ही कर्म को देखकर आज भी बहुत कठिन कार्य को भागीरथ प्रयास कहा जाता है |
गंगा एक मात्र ऐसी पवित्र नदी है , जो आकाश ( स्वर्ग ) पाताल , व धरती पर एक साथ बहती है |
माना जाता है , कलियुग की समाप्ति पर गंगा वैकुण्ठ धाम चली जाएगी | धरती गंगा से रिक्त हो (सूख ) जाएगी |
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लेखक;- गंगा स्नान से ______ रविकान्त यादव for more click me ;-http://justiceleague-justice.blogspot.in/ and https://www.facebook.com/ravikantyadava