एक व्यक्ति थे , पुरे नास्तिक , धर्म कर्म से कोई मतलब नहीं बस शराब पीना , जुआ खेलना , मारपीट , गाली गलौज , पैसे के लिए हाय हाय करना एक बार उनकी कद काठी देखकर एक फिल्म बनाने वाले ने उसे अपने रामलीला में काम करने के बदले पैसे देने की बात कही , बस फिर क्या था ,पैसे के लिए वो कुछ भी कर सकता था , डायरेक्टर तीन दिनों तक एक ही सीन करवाता रहा , हर बार कट बोल देता ,आख़िरकार तंग आकर उसने उसे डाटा , भावना लावो भावना ,चूँकि वह नास्तिक था, तो भावना कहा से लाता , थक हार कर उसने डायरेक्टर से हफ्ते भर का समय माँगा इस समय वह मंदिर मस्जिद गुरूद्वारे गया ,तरह तरह से ईश्वरीय कहानिया सुनी पात्रो को जाना , सोचा ,समझा तथा अच्छे -बुरे का फर्क भी महसूस किया उसे लगा अब वह रामलीला में अपना रोल भरत को कर सकता है , परन्तु इस बात से अनभिज्ञ वह स्वयं आस्तिक हो गया है , वह अपना रोल पूरी शिद्दत से करता उसका हर सीन अच्छा बना ,उसे तमाम पैसे मिले , स्वयं राम लीला के पात्र भरत उसके सपने मे आये बोले हे पापी मनुष्य तुमने मेरा चरित्र मुझसे भी अच्छी तरह से निभाया आज तुमने पहली बार पैसे के लिए अच्छा काम किया है | तुम्हारे लिए यह संभव कैसे हुआ ,जाओ आज से तुम्हारे सारे पाप नष्ट हो जा रहे है , दूसरी सुबह वह नास्तिक पूरा आस्तिक बन मंदिर पहुंच चुका था |
लेखक;-आस्थावान ____रविकान्त यादव for more click ;-http://justiceleague-justice.blogspot.com/
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बहुत बढ़िया।
ReplyDeleteचूँकि वह नास्तिक था, तो भावना कहा से लाता
ReplyDeleteआपने बिल्कुल गलत कहा नास्तिक में भी भावनाएं होती हैं अगर कोई व्यक्ति नास्तिक है तो इसका मतलब यह नहीं कि उसमें कोई भावना ही ना हो! उदाहरण के लिए भगत सिंह जिन्होंने देश प्रेम में हंसते-हंसते फांसी के फंदे को चूम लिया! क्या आप बता सकते हैं कि कोई व्यक्ति बिना भावनाओं के देश से प्रेम कर सकता है?
आज के समय में लोगों को नास्तिक से कम ढोंगी आस्तिक से ज्यादा खतरा है! जो हमेशा भोले भाले लोगों की भावनाओं के साथ खेलते हैं और उन को लूटते हैं! अगर भगवान इस दुनिया में है तो फिर किसी को नास्तिक क्यों बनने देते हैं भगवान की मर्जी तो पूरी सृष्टि चलती है तो फिर एक इंसान की मर्जी के खिलाफ कैसे हो सकता है भगवान तो सर्व शक्तिशाली है फिर ऐसा क्यों? अगर आस्तिक की नजर से देखे तो हमारे मन में आए हुए विचार भी भगवान की देन है तो फिर किसी व्यक्ति के मन में नास्तिक बनने का विचार क्यों डालते हैं? क्या उन्हें अपनी बुराई अपनी आलोचना सुनना पसंद है?
ये केवल एक काल्पनिक कहानी है। मनीषा जी।।
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