एक अमीर व्यक्ति थे , तमाम ऐशो आराम शानदार बंगला तमाम सुविधाये एक बार उन्हें किसी बहेलिये ने खरगोश लाकर दिया खरगोश की तमाम सेवाए होती उसे तमाम खाना मिलता , तमाम फल मिलता उसे घूमाने फिराने को नौकर थे ,एसी की हवा थी ,चूँकि उसे छत पर घुमाया टहलाया जाता परन्तु खरगोश की नजर हमेशा छत से सटे एक दीवार के पार जाने को सोचती , दिवार के उस पार जंगल था , परन्तु छत से कूदने की उसकी हिम्मत नहीं होती थी , छत खरगोश के लिए जरा ऊंची थी कई दिनों तक सोचते देखते आखिर कार उसने छत से कूदने की हिम्मत जुटा ली और नौकर बेख्याल उसे छोड़ टहल रहा था , अचानक खरगोश ने छलांग मारी और छत से होते हुए दिवाल पर से झाड़ियों में जाए गिरा ,
जब तक नौकर कुछ समझता खरगोश उछलते हुए , कुलांचे भरते हुए , जंगल की तरफ दौड़ गुम, नजरो से ओझल होता गया , मानो कह रहा हो तुम्हारा आसिवाना तुम्हे ही मुबारक ,अब मै आज़ाद हु |
लेखक;-खरगोश दर्शक ____रविकान्त यादव for more click ;-http://justiceleague-justice.blogspot.com/
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