Friday 24 February 2017

मानव फितरत (human nature )


लघुता से प्रभुता मिले, प्रभुता से प्रभु दूर । 
चींटी चीनी ले चली हाथी के सिर  धूर ॥ 


हम मानवो की फितरत ही ऐसी है , जो सांसारिक वर्चस्व है उसे ही चाहिए बेअर्थ , फिर अपने को भगवान् से भी बढ़कर हो जाते है , नम्रता , विनम्रता , ख़त्म किसी को जान से मारने तक की हैसियत लेकर भगवान को चुनौती देने से भी नहीं चूकते । 


ईश्वर ने हमें प्यार दिया लेकिन हमने नफरत पाल ली । 
ईश्वर ने हमें संतोष दिया परंतु हमने दौलत सोहरत की भूख पाल ली, क्यों कि जब मै था तो हरि नहीं , जब हरि है , तो मै नहीं । 


ईश्वर ने हमें कर्म दिया परंतु हमने उससे अधर्म पाल लिए । 
ईश्वर ने हमें ज्ञान दिया परंतु उससे हमने स्वार्थ पाल लिये । 
ईश्वर ने हमें धन दिया परंतु उससे हमने गुरुर पाल लिए । 
ईश्वर ने हमें हित दिया ,परंतु हमने लोगो का अहित पाल लिया । 
ईश्वर ने हमें शक्ति दी तो हमने लोगो का दमन पाल लिया । 
ईश्वर ने हमें प्रकृति , संसार , व शरिर  दिया परंतु उसे हमने बेचना सीख लिया । 
ईश्वर ने हमें सज़्ज़नता दिया परंतु हम दुर्जन हो गए ,। 
दाता ऊपरवाला है , परंतु चुनने वाले ग्राही हम हमारा अहम् है । 

 किसी युग में भस्मासुर था , शिव को तप  प्रसन्न किया ,वर स्वरुप वह जिसे सर पर हाथ रखे  वो  भस्म हो जाये ,

 अब क्या उसे ही शिव बनना था , शिव को भस्म करने चल पड़ा शिव भागते फिरे , भगवान विष्णु के हस्तक्षेप से जान बची भस्मासुर स्वयं मारा गया , । 
जरा  विचारिये वर्तमान समय उस समय से युगों हजारो गुना आगे है । 
यानी वर्तमान समय में उस समय से हज़ार गुना ज्यादा अधर्म है । 


लेखक;-मानवता हेतु ______रविकान्त यादव for more click ;-https://www.facebook.com/ravikantyadava
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