लघुता से प्रभुता मिले, प्रभुता से प्रभु दूर ।
चींटी चीनी ले चली हाथी के सिर धूर ॥
हम मानवो की फितरत ही ऐसी है , जो सांसारिक वर्चस्व है उसे ही चाहिए बेअर्थ , फिर अपने को भगवान् से भी बढ़कर हो जाते है , नम्रता , विनम्रता , ख़त्म किसी को जान से मारने तक की हैसियत लेकर भगवान को चुनौती देने से भी नहीं चूकते ।
ईश्वर ने हमें संतोष दिया परंतु हमने दौलत सोहरत की भूख पाल ली, क्यों कि जब मै था तो हरि नहीं , जब हरि है , तो मै नहीं ।
ईश्वर ने हमें कर्म दिया परंतु हमने उससे अधर्म पाल लिए ।
ईश्वर ने हमें ज्ञान दिया परंतु उससे हमने स्वार्थ पाल लिये ।
ईश्वर ने हमें धन दिया परंतु उससे हमने गुरुर पाल लिए ।
ईश्वर ने हमें हित दिया ,परंतु हमने लोगो का अहित पाल लिया ।
ईश्वर ने हमें शक्ति दी तो हमने लोगो का दमन पाल लिया ।
ईश्वर ने हमें प्रकृति , संसार , व शरिर दिया परंतु उसे हमने बेचना सीख लिया ।
ईश्वर ने हमें सज़्ज़नता दिया परंतु हम दुर्जन हो गए ,।
दाता ऊपरवाला है , परंतु चुनने वाले ग्राही हम हमारा अहम् है ।
किसी युग में भस्मासुर था , शिव को तप प्रसन्न किया ,वर स्वरुप वह जिसे सर पर हाथ रखे वो भस्म हो जाये ,
अब क्या उसे ही शिव बनना था , शिव को भस्म करने चल पड़ा शिव भागते फिरे , भगवान विष्णु के हस्तक्षेप से जान बची भस्मासुर स्वयं मारा गया , ।
जरा विचारिये वर्तमान समय उस समय से युगों हजारो गुना आगे है ।
यानी वर्तमान समय में उस समय से हज़ार गुना ज्यादा अधर्म है ।
लेखक;-मानवता हेतु ______रविकान्त यादव for more click ;-https://www.facebook.com/ravikantyadava
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