Monday, 13 February 2017

उल्कापिंड (meteoroid)


उल्कापिंड में ९०% पत्थर होता है , । बाकी लोहा , निकिल , या अन्य धातु होते है । ये हमारे ग्रह पृथ्वी के भाग या अंश नहीं है , ये अंतरिक्ष से भटककर पृथ्वी पर आते है , । औसतन साल भर में १० ग्राम तक १८००० से ८४००० तक  उल्कापिंड साल भर में पुरे पृथ्वी पर गिरते है । 

ये या तो किसी ग्रह पर एक दूसरे की टकराहट से बनते है या ये कोई उच्च सभ्यता द्वारा भेज गया सेटेलाइट उपग्रह , रिसीवर या रोवर हो सकते है , जो समय यात्रा द्वारा विकृत रूप में हमें प्राप्त होते हो , फिलहाल पूर्ण सत्यता नासा  ही  बता सकता है । 

उल्कापिंड को meteoride , asteroid , comet भी कहते है , हिंदी में टूटता तारा , लुका आदि कहते है । 
यदि उल्कापिंड आकर में छोटा है , तो पृथ्वी के वातावरण में रासायनिक क्रिया कर स्वयं जल कर नस्ट हो जाते है ,
जिसे आप आसमान में टूटते तारे के रूप में देख सकते है , अगर ये बहुत बड़े हुए तो इनका कुछ अंश धरती पर गिरेगा ही जो जान माल की भीषण तबाही मचा सकता है , । 
एक समय उल्कापिंड मंगल ग्रह जितना पृथ्वी से टकराया था उसके टक्कर से धुल, गुबार से चन्द्रमा बना वही एक उल्कापिंड के टक्कर में डाइनोसोरो का सफाया हो गया था । 
अतः कोई भी बड़ी उल्कापिंड पृथ्वी व पृथ्वी के जीवन को तबाह कर सकती है । 


लेखक;-टूटते तारे देखते______रविकान्त यादव  for more click me ;-https://www.facebook.com/ravikantyadava
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