Saturday, 14 January 2017

जीवन ( life )

जीवन रूपी एक छोटा  सा बीज उगता है , फिर एक वृक्ष बनता है , जिससे तमाम भरण पोषण करने वाले फल फूल , पत्तिया , लकड़िया , जो पशु पक्षियों व मानवो को छाया ऑक्सीजन व जीवन देता है । 

एक छोटे से अन्न के अंदर छिपा जीवन जिसे कृतिम या वैज्ञानिक लैब में नहीं बनाया जा सकता ,यह प्राकृतिक है , प्राकृतिक से आशय ईश्वरीय वरदान है । 



अभी तक जीवन की सुक्ष्मता व दीर्घता विज्ञान द्वारा नहीं खोजा जा सका है , सूक्ष्मता को दर्जनों वैज्ञानिक large hadron collider दुनिया की सबसे बड़ी मशीन द्वारा god particle पर आकर रुक गये  व दीर्घता को ब्रह्माण्ड नाम देकर किनारा कर लिया । 



जीवन है तो महानता भी है , अन्न व फल के बीज जमीन में रोपने के बाद कभी जुठे अशुद्ध नहीं होते । ऊपर केवल एक आवरण होता है , ।  उन आवरण को  भेद कर चीर कर जीवन अंकुर बीजो के अंदर से उत्पन्न होता है । 
फल में जीवन नही होता इसलिए व्रत आदि में फल आदि खाने का विधान है । 


माता पार्वती अपनी तपस्या में  शिव को पाने हेतु अन्न में जीवन देखते हुए उसका त्याग किया ,फिर फलो में बीज देखते हुए उसका त्याग किया फिर जमीन पर गिरे पत्ते खाकर तपस्या प्रारम्भ किया , घोर तपस्या देख शिव भेष  बदल कई बार माता पार्वती के पास आये , बहुत समझाया वो शिव वैरागी है , विवाह करना तो दूर स्त्री की तरफ देखता तक नहीं भूत प्रेत जहरीले खतरनाक जानवरो के साथ रहता है । 

परंतु माता पार्वती  ने घोर जंगल में घोर जानवरो के बीच धुप पानी में घोर तपस्या करते हुए जल व पत्तो तक का त्याग कर अपनी काया तक को बदल दिया , इसलिए उनका एक नाम अपर्णा भी पड़ा । 

विकट विकराल तपस्या के प्रभाव से शिव की भी काया बिगड़ गयी घबराये शिव आकर माता पार्वती को वर स्वरुप प्रदान होने का वरदान देते है । 
पूर्वजन्म में शिव देवी दक्ष के यहाँ जाने से मना कर रहे थे , परंतु देवी सती तरह तरह के रूप दिखा कर शिव को भयभीत कर जाने की आज्ञा ले ली । 

मानडव्य ऋषि तपस्या कर रहे थे , चोर सिपाहियों से भागते हुए धन उनकी कुटिया में फेक दिया उनके ऊपर चोरी का आरोप लगा , राजा ने उन्हें दंड सुनाया उन्होंने सोचा किस कर्म की सजा मिली उन्होंने कई जन्म देख लिए उनकी प्रार्थना पर आकशवाणी हुई अपना १०१ वा जन्म देखो उन्होंने देखा एक बालक एक कीट पकड़कर
 उसे कांटा चुभाकर खेल रहा है , दण्डित हो चुके ऋषि को अन्य ऋषि ने निर्दोष बता मुक्त करा लिया । 
एक और कथा  इसी कर्म के लिए यमराज ने उन्हें नर्क की सज़ा दी तो ऋषि ने उन्हें यह कहकर की १२ वर्ष में धर्मज्ञान से बालक अबोध होता है , और शाप दिया धरती पर तुम दासी पुत्र जन्मोगे बाद में यमराज धरती पर विदुर के रूप में जन्मे ॥ 
अतः जीवन की इज़्ज़त करो , जियो , जिलाओ , व जीने दो ॥ 
लेखक;-जीवन से ....... रविकान्त यादव for more click me ;-http://justiceleague-justice.blogspot.com/
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