Sunday 24 July 2022

मन (mind)

भगवान श्री कृष्ण कहते है , मन बहुत चंचल है , मन को नियंत्रण करना बहुत कठिन है | परन्तु मन को साधना दुष्कर भी नहीं है | 

महाभारत में यक्ष प्रश्न पर धर्मराज युधिष्ठिर बताते है , मन की गति सबसे तेज है | 

मन बड़ा स्वार्थी है , क्षण  भर में अपने सपने बुन लेता है , | काम , क्रोध , मद , मोह , लोभ , ईर्ष्या , क्षण से भी कम समय में इन विकारो में से किसकी तरफ मुड़ जाये ये कहना मुश्किल होगा | 

अहम् जहा मद में , मद क्रोध में , क्रोध हिंसा में ,हिंसा पाप में परिवर्तित हो सर पर कलियुग व पाप सवार होने में समय नहीं लगता | 

भगवान श्री कृष्ण बताते है , शरीर रथ है , उसका सारथी मन है , आत्मा स्वामी है , व इन्द्रिया उस रथ के घोड़े है , जो मन बुद्धि द्वारा इन्द्रिया रूपी घोड़े को वश में नहीं रखते वे भोगो के लोभ में दुःख रूपी गड्ढे में गिरते है | ज्ञानी लोग बुद्धि द्वारा मन इन्द्रियों को वश  कर अमृत रूपी श्रेय के मार्ग से परमानंद (ब्रम्हनिर्वाण ) प्राप्त करते है | 

एक बार श्री कृष्ण  सुदर्शन चक्र से कहते है , हे सुदर्शन तुम स्वयं निर्णय  क्यों नहीं लेते हो , सुदर्शन कहते है , हे प्रभु  मै काल यात्रा करके आपके पास आता हु , इस दौरान मै एक ही व्यक्ति को हजारो बार दुःख से ग्रस्त मरते हुए देखता हु , ऐसा जीवन किस काम का जिसमे व्यक्ति अपनी आत्मा का संवर्धन न कर सके , हे प्रभु आप ध्यान लगाकर किसे नहीं देख सकते अतः आप मुझसे स्वयं निर्णय लेने की आशा अपेक्षा न करे | 

एक कथा आती है , राजा ययाति की दूसरी शादी से नाराज उनके ससुर शुक्राचार्य ने उन्हें  स्त्री लम्पट कहकर बूढ़े होने का शाप  दे दिया , तब ययाति के बहुत अनुनय विनय व समझाने के बाद शुक्राचार्य ने कहा तुम अपना बुढ़ापा किसी की जवानी से बदल सकते हो , अभी ययाति की भोग विलास की इच्छा गयी नहीं थी , अतः वह अपने पुत्रो से उनकी जवानी मांगते है , सभी ने मना कर दिया , ऐसे में सबसे छोटे पुत्र पुरु से पिता की यह लालसा दशा देखी न गयी उसने ययाति का  बुढ़ापा  ले लिया व अपनी जवानी यौवन ययाति को दे दिया , इस तरह राजा ययाति कई सौ सालो तक भोग विलास करते रहे , अंत में विषय वासना से तृप्ति न मिलने पर उन्हें इनसे भोग विलास से घृणा हो गयी , उन्होंने अपने पुत्र पुरु की युवावस्था वापस लौटा दिया व कहा ,भोग विलास , कामनाओ का कोई अंत नहीं है | व पुरु को राजपाट का अधिकारी नियुक्त कर स्वयं बैराग्य धारण कर लिया | 

मोक्ष व निर्वाण का रास्ता ठीक मूंगफली के दाने की तरह है | जिसकी महत्ता नजरो से नहीं दिखती जो तमाम धूल ,मिट्टी , कीचड़ , धुप , हवा , पानी से रहित होकर सेवा भाव, उपभोग के लिए ही उत्पन्न होता है | ठीक उसी प्रकार व्यक्ति तमाम सांसारिक विकारो से बच कर जीवन सेवा भाव की तरफ लगाए , दया , प्रेम , दान, सेवा , धर्म सद्गुणों से युक्त हो | 

मनरूपी समुद्र में विचार रूपी लहरे आती रहती है , जो दृणसंकल्पित रूपी किनारो से टकराती रहती है | अतः मन को दृणसंकल्पित तप द्वारा वश में किया जा सकता है | 
लेखक;-मन से ____रविकान्त यादव