आज के आधुनिक युग में हम प्रकृति को छोड़ ईश्वर के वरदान फसल ,फल ,सब्ज्जियो के उत्पादन में आर्गेनिक और कम्पोस्ट उर्वरको को छोड़ अंधी दौड़ में रासायनिक उर्वरको को उपयोग कर रहे है | जिससे तमाम बिमारीया उत्पन्न हो रही है | कारण को जाने बगैर हम लोग डॉक्टर के पास दौड़ पड़ते है , वही रासायनिक pesticides से कीड़े तो मर ही रहे है , चिड़िया व आदमी भी मर रहे है |
ये रासायनिक उर्वरको के प्रयोग से ही हमें लीवर ,किडनी ,ह्रदय , पेट के रोग समय से पहले आँख , दांत , बाल का गायब होना व तमाम प्रकार के कैंसर का कारक है |
ये रासायनिक उर्वरक ही है जो मृदा की उर्वरा शक्ति कम करती है | युरिया ,डाई , पोटास से किसान के मित्र कहे जाने वाले केंचुवे मर जाते है |
ये विडम्बना ही है ,कि विश्व का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश में , विश्व के सबसे बड़े पशुपालक देश में हम मुर्ख भारतीय विदेशो से रासायनिक उर्वरक आयात करते है | हमें जापान से सीखना होगा जो भारत से बहुत छोटा देश है , परन्तु विश्व में आर्गेनिक खाद (जैविक खाद ) बनाने व एक्सपोर्ट करने में विश्व में पहला नंबर रखता है |
प्रकृति से सानिध्य रखने के कारण जापान के लोग विश्व में सबसे स्वस्थ्य व लम्बा जीवन जीते है | वो गाय भैस के गोबर व मूत्र से अमृत तुल्य फल फसल व सब्जिया उगाते है | (organic ) जैविक खाद जो गाय व भैस के गोबर से प्रक्रिया प्रोसेस द्वारा बनती है | भारत विश्व का सबसे बड़ा पशुपालक देश है फिर भी इस पर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता , विदेशो में ऑर्गनिक खेती को बढ़ावा दिया जाता है , किसानो को सब्सिडी व प्रोत्साहन दिया जाता है |
बाज़ार में ऑर्गनिक से उत्पाद जैसे चना , मूंग , मूंगफली , चावल ,दाल ,शहद , गुड ,गेहू आदि सामान्य उत्पाद की तुलना में डेढ़ गुना दाम पर मिलता है , कारण इनमे रोग प्रतिरोधक क्षमता व उच्च गुणवत्ता पोषक व किसी प्रकार शरीर को नुकसान नहीं पहुँचता है | organic (जैविक खाद ) बाज़ार में 70 रूपये किलो तक बिकते है | अमेज़न जो विश्व की सबसे बड़ी e कॉमर्स कंपनी है , जो उच्च गुणवत्ता के नाम पर इसे 170 रूपये किलो तक बेचती है | जिसे बागवानी करने वाले घर पर सब्जी फल उगाने वाले बड़े प्रेम से खरीदते है |
यहाँ बताना चाहुगा भारत भैस के मांस का सबसे बड़ा निर्यातक है , व गाय के मांस का पांचवा (5 th ) सबसे बड़ा निर्यातक है | यदि हमारी सरकार गाय भैस के गोबर को ३ रूपये किलो भी ले (ख़रीदे ) तो गो हत्या व भैस हत्या में कमी आ सकती है | परन्तु अफ़सोस शहरो में अधिकतर गोबर को नालियों में बहा दिया जाता है | व विदेशी हमें पिछड़ा या विकाशसील देश कहकर खुश होते है |
भारत विश्व में सबसे ज्यादा हिन्दू मंदिरो वाला देश है, यहाँ प्रतिदिन टनो फूल, पत्तिया, माला आदि देव देवी को अर्पित किया जाता है , जिसे या तो कूड़े में फेक दिया जाता है या गंगा में बहा दिया जाता है , जो नदी को प्रदूषित ही करेगा | इससे फूल पत्ती व छिलको आदि से कम्पोस्ट उर्वरक बनती है , या बनाई जा सकती है | जो बाज़ार में 50 रूपये किलो व सबसे बड़ी e कॉमर्स कंपनी अमेज़न पर 150 रूपये किलो तक बिकती है |
जागरूकता व शिक्षा के अभाव में देश गरीब (पिछड़ा ) या विकाशसील नहीं रहेगा तो और क्या रहेगा ? मृदा परीक्षण में बहुत जरुरी हो तो हम जैविक खाद को 50 % रासायनिक खाद में मिलाकर फसलों को दे सकते है |
लेखक;-खेती से......... रविकान्त यादव
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सुर्यवंशी , चन्द्रवंशी आज भी होते है , जो अपने सिद्धांतो पर जीते है |
अवतार धर्मात्मा लोगो की वजह से ही होते है , यदि धर्मात्मा नहीं होंगे तो अवतार भी नहीं होंगे |
ईश्वर पर किसी का कॉपीराइट नहीं होता वो सभी के होते है |
हिन्दू जिसे अवतार कहते है , वही मुस्लिम रसूल कहते है , ईश्वर किसी से ऊंच -नीच ,जात -पात का भेद भाव नहीं करते वो सबके होते है |
श्रीराम जहा अछूत कहे जाने वाली शबरी के हाथ से बेर खाते है , वही कृष्ण दासी पुत्र विदुर के यहाँ केले के छिलके भी खा लेते है | मान्यता है ,कलयुग के अंतिम समय में कल्कि भगवान अवतार लेगे , जब पृथ्वी पर अग्नि ,वायु , जल ,मिट्टी , व धुप अपने मूल स्वभाव में नहीं रहेगी ,ये अपनी कृपा बरसाना बंद कर देंगे |
मनुष्य जाति अपने स्वार्थ में सारी हदे पार कर जायेगा , चारो तरफ अधर्म ,अत्याचार , अन्याय का बोल बाला होगा , ऐसे समय में आदमी से देवता भी डरने लगेगे तब गंगाजली ब्राह्मण व ब्राह्मणत्व का पूर्ण व पवित्र पालन करने वाले भगवान कल्कि अवतार लेंगे , जो धर्मात्मा अच्छे लोगो के दुःख से द्रवित होकर शिव की तपस्या करेंगे व दिव्यास्त्र प्राप्त करेंगे , जो लगभग नरक बन चुकी पृथ्वी की रक्षा करेंगे व धर्मात्मा लोगो को पृथ्वी की तरह दुसरे ग्रह पर ले जायेगे जहा सतयुग चल रहा होगा |
लेखक ;-कलियुग से....... रविकान्त यादव
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१) पृथ्वी पर समय तेज़ी से चलता है , पृथ्वी के १०० साल इंद्र के (स्वर्ग ) के एक पलक झपकने के बराबर होता है |
इंद्र के 100 साल ब्रम्हा (ब्रम्हलोक ) के एक पलक झपकने के बराबर होता है |
ब्रम्हा के 100 साल विष्णु (वैकुण्ठ लोक ) के एक पलक झपकने के बराबर होता है |
जब विष्णु के सौ साल होते है ,तो शिव के एक पलक झपकने के बराबर होता है |
व शिव के सौ साल देवी के एक पलक झपकना के बराबर होता है |
२) स्वर्गलोक :- स्वर्गलोक से आशय प्रकाश का घर होता है , उत्तराखंड के सुमेरु पर्वत के ऊपर स्वर्गलोक है , जिसे देवलोक भी कहते है , | जहा पुण्य आत्माये रहती है , यहाँ किसी प्रकार का पाप नहीं रहता ,तथा हर तरह की सुख सुविधा आनंद रहता है | यहाँ कोई दुःख कस्ट नहीं रहता ,यहाँ के राजा इंद्र है व व्यक्ति पुण्य क्षीण होने तक यहाँ रहता है |
३)अमरावती नगरी ;- स्वर्ग की राजधानी अमरावती नगरी है , जो भव्य ,मंत्र मुग्ध , मोहक है | इसका द्वारपाल इंद्र का वाहन ऐरावत है , अमरावती से आशय अमर लोगो का शहर है , जो देवताओ से आशय है | इसका निर्माण विश्वकर्मा ने किया था |
४) वैतरणी नदी ;- गरुण पुराण अनुसार यम के द्वार पर यह नदी बहती है , अच्छे -बुरे दोनों को इस नदी को पार करना पड़ता है | जिसका पानी रक्त का होता है , जो बहुत ही गर्म बदबूदार होता है , इसका रक्त का जल पापीयो को देखकर खौलने लगता है , इस नदी में पस , हड्डिया ,लहू ,बाल भरा रहता है व खतरनाक कीड़े मकोड़े व जीव रहते है | पुण्य आत्माओ को यमदूत सहारा देकर इसे पार करा देते है |
5 )यमलोक (नर्क);-यमलोक या नरक के स्वामी यमराज है , जो अच्छी बुरी आत्माओ का हिसाब करके उनको स्वर्ग या नर्क का अधिकारी नियुक्त करते है , व पापी आत्माओ को तरह -तरह से दंडित करते है , प्रमुख भयानक 36 प्रकार की नर्क की सजाए है |
6 ) पितृलोक ;-यहाँ व्यक्ति (पिता)1 साल से लेकर 100 साल तक रहता है | जब तक उसका पुनर्जन्म न हो जाये | यमराज पितृलोक का प्रधान होता है |
7 ) गोलोक ;- यह भगवान कृष्ण की नगरी है , यही भगवान श्री कृष्ण अपने लोगो के साथ रहते है |
लेखक;-पृथ्वीलोक से ___रविकान्त यादव
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* समय की मार से और काल के पंजे से पृथ्वी पर स्वयं भगवान भी नहीं बच सकते |
* ईर्ष्यालु व्यक्ति जल में डूबते हुए वह व्यक्ति है , जो स्वयं तो डूबेगा ही साथ में आप को भी पकड़ -जकड लेगा |
* जो आप पर झुठा आरोप लगाता है , वह कही न कही असुरक्षित है और जान जाइये वह आप से तुच्छ है |
* बेटा कहने वाले हज़ार मुँह मिल जायेगे ,परन्तु बेटी कहकर सहृदयता दिखाने वाले बहुत कम |
* जीवन में सफल होने का एक ही मंत्र है, कठोर परिश्रम , क्रोध न करना और ज्ञान का दामन न छोड़ना |
* आप कितना भी ज्ञान अर्जित कर लो परन्तु उसे आचरण में नहीं लाये तो सब व्यर्थ है |
* जिस प्रकार तमाम कांटो के बीच गुलाब रहता है , उसी प्रकार बुरे लोगो के बीच भी अपना कार्य करना भी जरूर आना चाहिए |
* शर शैया पर पड़े ,द्रौपदी ने भीष्म पितामह से पुछा, भरी सभा में मेरा चीर हरण हुआ परन्तु आप कुछ नहीं बोले तो भीष्म पितामह ने कहा दुर्योधन का पाप का धन खाने की वजह से मेरी बुद्धि भ्रस्ट हो गयी थी |
* समय के बिगड़े व्यक्ति को समय ही बिगाड़ देता है |
* आज द्वेष रखने वाले भेष बदल कर रहते है |
* आहत को राहत देना ईश्वर सेवा है |
* तपस्या व अच्छाई का फल भविष्य में व्याज के रूप में जरूर मिलता है |
* बहुतयात दौलत अमीरो के लिये परेशानी का सबब व साधु संतो के लिए गले की फाँस बन जाता है |
* स्थिर , ठहराव से अच्छा है , सक्रिय प्रवाहमान बने रहो |
* अवसरवादी घात लगाए मगरमच्छ के जबड़े की तरह होता है , जो दिखाई भी नहीं देता |
* सुविधाए ही व्यक्ति को धीरे- धीरे अपना दास बना लेती है |
* जिस प्रकार अम्बर से हमें हवा ,पानी , रोशनी मिलती है , हमें भी उसी प्रकार किसी के लिए राहत व छाया बन जाना चाहिए |
* जिस प्रकार बिना फूल के फल नहीं आते उसी प्रकार बिना लगन व विनम्रता के विद्या नहीं आती |
* जिस प्रकार एक एक तिनके से घोसला बन जाता है , उसी प्रकार थोड़े थोड़े श्रम से व्यक्ति अपना भविष्य बना सकता है. मंज़िल पा सकता है |
* जिस प्रकार वज्रपात जलधारा से बड़े बड़े पर्वत भी टूट जाते है , उसी प्रकार घमंड से भरा व्यक्ति का भी नाश हो जाता है |
* जिस प्रकार बादलो में सुर्य का प्रकाश ज्यादा देर छुप नहीं सकता ठीक उसी प्रकार व्यक्ति की प्रतिभा छिप नहीं सकती |
* जैसे बिना पतवार के नाव दिशाहीन है , वैसे ही बिना उद्देश्यय जीवन दिशाहीन है |
लेखक;-विचारक ____रविकान्त यादव
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हिन्दू धर्म में कहा गया है ,84 लाख जन्मो कीट ,पतंगों ,पशु ,पक्षीयो के बाद मानव का जन्म मिलता है | ऐसे में जन्म ,मरण के चक्र से मुक्ति के लिए मोक्ष का मार्ग बताया गया है , मोक्ष से आशय ईश्वर से एकाकार होना , परमानन्द (bliss ) प्राप्ति अर्थात जिस प्रकार भूखे प्यासे को कुछ नहीं चाहिए उसे केवल भोजन व जल से ही तृप्ति मिल जाती है | ठीक उसी प्रकार मोक्ष की प्राप्ति है | स्वर्ग लोक जाना भी मोक्ष की प्राप्ति नहीं माना जाता , क्यों की पुण्य क्षीण होने पर फिर मानव जीवन लेना पड़ता है |
हमारे धर्म में ;-धर्म , अर्थ , काम , मोक्ष का विधान दिया गया है | मानव जीवन के रहन -सहन , खान -पान के विकार व उत्पन्न वासनाये व्यक्ति को भटकाने के लिए ही होती है , जो उसे मोक्ष के मार्ग से दूर ले जाती है | अपने विषय में सोचते सोचते जीवन पथ पर हम कब स्वार्थी हो जाते है , हमें पता ही नहीं चलता | समय देखते देखते व्यतीत हो जाता है | जीवन के अंतिम क्षड़ो में जब व्यक्ति को आत्मबोध होता है तो वह अपने समय का सदुपयोग न कर पाने को लेकर बहुत पछताता है |
उसे जीये गये जीवन की सभी कमीया याद आने लगती है , जैसे शिक्षा , धन , अपराध , व्यसन , नशा , जीविका, नौकरी, लोभ, मौजमस्ती ,भोग-विलास , परोपकार सदुपयोग आदि आदि | सज्जन और दुर्जन अपने अपने तरीके से जीते है , बबूल ,नीम , आम , का फल व स्वभाव अलग- अलग होता है |
कृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र का सदुपयोग किया , अर्जुन ने अपने गांडीव का सदुपयोग किया तब जाकर जीवन रूपी कुरुक्षेत्र पर विजय प्राप्त कर सके |
अपने धन , बल , पद, ज्ञान, सेवा जिसके पास जो सामर्थ्य है , उसे ही परोपकार की भावना बना कर कार्य करना चाहिए | पात्रता स्थिति का चयन करती है , अर्थात बुरे के संग बुरा होगा |
आइये जानते है , मोक्ष के मार्ग क्या है |
1 ) कर्मयोग ;- जैसे एक व्यक्ति नारियल का पौधा लगाता है , उसकी सेवा करता है , खाद- पानी देता है , अपने परिश्रम से उसे बड़ा करता है , फिर उससे अपनी भूख प्यास मिटाता है , यही है , कर्म योग |
कर्म योग के उदाहरण, कबीर दास जो गृहस्त जीवन जीये वो एक जुलाहा ( कपडे बुनने वाला ) थे | उनकी मृत्यु पश्चात् हिन्दू व मुस्लिम उनके शव पर अधिकार को लेकर लड़ने लगे हिन्दु कहते वो हिन्दु है | व मुस्लिम कहते वो मुस्लिम है , कहते है , जब शव से चादर हटायी गयी तो उन्हें वहा कुछ फूल मिले जिन्हे उन्होंने आपस में बांटकर अपने अपने तरीके से उनका अंतिम संस्कार कर दिया |
कर्मयोग के एक और उदाहरण एक संत हुए रविदास वो एक मोची थे , उनका कहना था , मन चंगा तो कठौती में गंगा , इनको गंगा जी ने इनकी कठौती में स्वयं दर्शन दी थी |
2 ) ज्ञानयोग ;-इसमें हमें कोई बता देता है , कि यह नारियल का पेड़ है , तथा इसका फल खाया जाता है | तथा उसके उपयोग की सारी जानकारी देता है , | इसका उदाहरण है , महर्षि वेदव्यास जिन्होंने चारो वेदो को व्यवस्थित किया , सभी पुराण लिखे महाभारत व गीता की रचना की ,तथा अपने तपोबल व योगसाधना से अमर है , व आज राज्य उत्तराखंड के बद्रीनारायण क्षेत्र में रहते है |
3 )भक्तियोग ;-इसमें हमें कोई नारियल का फल छीलकर उसका जल व गिरी हमारे हाथ में रख देता है , हमें बस उसका उपभोग करना रहता है | इसमें हमें श्रम व ज्ञान से कोई मतलब नहीं रहता , इसमें किसी की महिमा व कृपा होती है |
उदाहरण मीराबाई जो राजपरिवार से थी , कृष्ण की भक्ति में भजन गाती व नाचती रहती थी | उसका विवाह हो गया फिर भी वह पागलो की तरह बावरी नाचती गाती रहती थी , समाज में बदनामी व अपमान को लेकर उन्हें कई बार जान से मारने की साज़िश रची गयी कोसिस की गयी परन्तु उसका बाल भी बाक़ा नहीं हुआ , कहा जाता है , ऐसे में वह नाचते गाते एक दिन कृष्ण की प्रतिमा में समा गयी | भक्त प्रह्लाद व भक्त ध्रुव भी भक्तियोग के उदाहरण है |
अर्थात कह सकते है , प्रेम के मार्ग पर चलने वाले सज्जन मन,वचन, कर्म से किसी को आहत नहीं करते |
तमाम व्याधियों से पीड़ित ,यह जीवन क्षण भंगुर है | नियति को पता न क्या मंजूर हो , अतः ईश्वर से हमें सद्बुद्धि माँगना चाहिए | जीवन , संस्कार व बड़ो की सेवा का अवसर बार बार नहीं मिलता अतः नेक नीयत के साथ जीना चाहिए व सुख -दुःख में सामान मनोभाव रखना चाहिए |
लेखक;-जीवन मार्ग से ____रविकान्त यादव for more click me ;- https://justiceleague-justice.blogspot.com/