Monday 26 December 2016

विपणन एक कला (art of marketing )

जो दीखता है वो बिकता है भारत में छोटे छोटे व्यापारी या धंधे वाले इसका पूरा उपयोग करते है । 
उन्हें जरुरत नहीं है महंगे या टीवी प्रचार की । 
क्यों की बेवजह इतनी पूंजी खर्च की जरुरत भी नहीं पड़ती । 

जैसे एक अमरुद वाला अपने अमरुद को दिखायेगा , जनता अरे ये कौन सा अमरुद है ?? रुक कर दो तीन किलो अमरुद ले लेगा । 

कभी कभी मिठाई के दुकान वाले धागे पर बड़े बड़े जलेबा टांग कर दिखाते है । जनता अरे इतना बड़ा जलेबा जरूर आज कुछ विशेष दिन है दो चार किलो दे दो । 
पान वाला भले भी पान में सामग्री कम दे परंतु ऐसा सलीके से कोन बना के प्रस्तुत करता है , न चाहने वाला भी खा खरीद  ले । 
आज के युग में रंग बदलने वाले साइन बोर्ड बिजली की रोशनी  से जगमगाते रंग बदलते अक्षर । 
इलेक्ट्रॉनिक कंप्यूटर बोर्ड की सुंदरता ऐसी न देखने वाला भी बरबस रुक कर पढ़ने लगता है । 
यही नहीं तमाम ऑफर , लकी ड्रा , एक के साथ एक फ्री आदि । 
सड़क पर रिक्से पर बालम खीर recorded बोलता जायेगा चलता जायेगा कही कही देने 5 -5 मिनट रुकेगा  बालम खीरा पेट को बना दे हीरा आदि  । 
हां इनमे उत्पाद पर ट्रेड मार्क , नाम , गुण , व वाहवाही जरूर लिखी रहती है । 
कुछ व्यापारी कला व उत्पादन से थक जाते है । तो अपने को गुणवत्ता का सहारा लेते है । अतः गुणवत्ता तो प्रयोग के बाद ही पता चलती है । 

गुणवत्ता के नाम पर यहाँ के काजू निर्यात विश्व में वो ३ नo  पर है।, इसी तरह यहाँ के केसर भी ३ नo पर है ।  
यहाँ के अलफांजो आम गुणवत्ता के साथ १ नंबर पर है ।
 यहाँ की उच्च गुणवत्ता चाय १ नंबर पर है , यहाँ के मसाले निर्यात भी पहले भारत 1 नंबर पर है , आदि उच्च गुणवत्ता को विदेश भेज दिया जाता है , यहाँ गरीबी नहीं तो और क्या है । 
अतः कह सकते है विपणन की  प्रथम सोपान है , उत्पादन को बेचने की कला जिसका प्रथम व आखिरी लक्ष्य होता है माल बेचना पैसा कमाना ।

विपणन सिर्फ क्रय विक्रय नहीं है , यह उपयुक्तता ,उपयोग, उपभोग व उपयोगिता पर आधारित तमाम सेवाओ का एक विशेष बाज़ार है । 

लेखक;- विद्यार्थी ......... रविकान्त यादव for more click ;-http://justiceleague-justice.blogspot.in/
and on facebook.com/ravikantyadava 



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