Thursday 12 April 2018

पारस पत्थर (philosopher's stone)


१) भारतीय पौराणिक ग्रन्थ कहानियो व लोक कथाओ में पारस पत्थर का जिक्र मिलता है | 

२) पारस पत्थर को सफ़ेद चमकता हुआ बताया गया है , जिसे छुवाने से लोहा सोना बन जाता है | 



३) माना जाता है ,कौवो की इसकी पहचान होती है , इसलिए जानकार लोग कौवो के पैरो में छोटे छोटे लोहे के छल्ले लगा देते थे , जिसको सोना बनने पर उस पर नजर  रखी जाने लगती थी , व पीछा किया जाने लगता था |

४) पारस पत्थर हिमालय क्षेत्र में व हिमालय जंगल में ही मिलती है , अन्य पत्थरो की तरह ही यह भी होता है| 
परन्तु अँधेरे में चमकने लगता है | 



५) प्राचीन समय में ज्ञानी संत लोग पारस पत्थर लाकर अपने शिष्यो  व सेवको को दे देते थे | 



६) लोग मानते है , मध्य प्रदेश के पन्ना जिले में  वहा से 70 km दूर दनवारा गांव के एक कुवे में रात में रोशनी दिखाई देती है , लोगो का मानना है , ये पारस मणि है | 

७) हिमालय क्षेत्र के लोग अपने जानवरो के पैरो में लोहे की नाल लगा देते है , जिससे की पारस पत्थर के संपर्क में आने पर वह सोना बन जाये , झारखण्ड के गिरिडीह इलाके के पारसनाथ  जंगल में आज भी लोग पारस मणि की खोज करते रहते है | 




८) कहा जाता है ,मध्य प्रदेश के राजा राजसेन के पास पारस पत्थर था , इसी पारस पत्थर के लिए उन्होंने कई  जंग लड़ी , एक बार जब वो हार गए तो उन्होंने पारस पत्थर को रायसेन किले में ही स्थित एक तालाब में फेक दिया , युद्ध में राजा की मौत हो गयी व कहा जाता है , पारस पत्थर अब भी किले में मौजूद है , और इसकी रखवाली जिन्न करते है | 



जो लोग पारस पत्थर की तलाश में किले में गए उनकी मानसिक हालत खराब हो गयी कहा जाता है , रात में गुनिया तांत्रिक खजाने के लिए खुदाई करते है , दिन में जो किले में घूमने आते है ,उन्हें  बड़े बड़े गड्ढे व तंत्र क्रिया दिख जाती है | 


९) वर्तमान समय  में मेहनती , गुणवान ज्ञानी व अच्छे व्यक्ति को ही पारस कहा गया है , जिसके संपर्क में आने पर परिस्थितिया व बुरे व्यक्ति बदल जाते है | 


लेखक;-रोचकता हेतु _______रविकान्त यादव for more click me ;- http://justiceleague-justice.blogspot.in/  and
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Wednesday 11 April 2018

एकादशी कथा ( fasting day)


एकादशी महीने में दो बार पड़ती है , एक कृष्ण पक्ष व दूसरी शुक्ल पक्ष में इस तरह यह साल में 24 एकादशी पड़ती है , सभी  का नाम अलग अलग है , व सभी का अपना अपना माहात्म्य है , व सभी की कोई न कोई अपनी अपनी कहानिया है | यह भगवान विष्णु को समर्पित व्रत है | जिसमे मनुष्य के पापो का नाश हो जाता है , व व्रती को विष्णु लोक प्राप्त होता है | 
इस एकादशी के सभी व्रत की तिथि आप अपने कैलेंडर में देख सकते है | 

सतयुग में मुरसुरा नाम का एक महाबलशाली राक्षस था , उसने स्वर्ग पर अधिकार कर लिया देवता भगवान शिव के पास गए तब शिव ने उन्हें भगवान विष्णु के पास जाने को कहा भगवान विष्णु सभी देवताओ के लिए मुर के सभी राक्षसी सेना का संहार करते है , तथा मुर से विष्णु का कई वर्षो तक युद्ध चला , तब भगवान विष्णु को नींद आने लगती है |  वह मुर का वध करने में असफल होते है ,तथा बद्रिकाश्रम में हेमवती नामक गुफा में विश्राम करने चले जाते है | 
मुर दानव भी उनके पीछे पीछे घुसा और सोते हुए भगवान को मारने के लिए बढ़ा तो विष्णु जी सीने से एक कन्या निकली उसने मुर राक्षस का वध कर दिया | 




जब विष्णु की नींद टूटी तो उन्हें आश्चर्य हुआ , तब देवी कन्या ने उन्हें  सब विस्तार से बताया तब विष्णु ने कन्या का नाम उस दिन के अनुसार एकादशी रखा तथा वरदान स्वरुप कहा , जो भी तुम्हारा व्रत रखेगा उसके सभी पापो का नाश होगा और उसे विष्णुलोक मिलेगा , तब से एकादशी व्रत की परम्परा चली | 


व्रत के एक दिन पहले से शुद्ध - सात्विक रहे नियम संयम का पालन करे व्रत के दिन सभी प्रकार के अन्न का त्याग करे , व्रत के दिन कोई काम काज न करे जिससे भूल के भी कीट पतंगों।, जीव -जन्तुओ की हत्या न हो | 

२) सभी पांडव एकादशी व्रत का पालन करते थे , परन्तु भीम के लिए यह संभव नहीं था , वह चाह कर भी इस व्रत को नहीं कर सकते थे |  क्यों कि उनके उदर में वृक नामक अग्नि रहती थी , जो उन्हें भूख से जलाती रहती थी , जिससे वह दिन में कई बार व बहुत सारा भोजन करते थे | 



एक बार उन्होंने महर्षि वेद व्यास से पूछा क्या कोई ऐसी विधि है , जिसे करने से सभी एकादशियो के व्रत का फल मिले तो उन्होंने भीम को निर्जला एकादशी रखने का उपाय बताया | 

भीम बिना जल के इस व्रत को विधि पूर्वक करते है | परन्तु सुबह होते होते वह भूख से मूर्छित बेसुध हो जाते है , 
तब पांडव उन्हें तुलसी गंगाजल आदि से उन्हें होश में लाते है ,व खीर आदि से उनका उपवास खुलवाते है , तब से निर्जला एकादशी को भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है , | 
एकादशी के दिन जो व्रत  करने में असमर्थ है , वो इस दिन शुद्ध सात्विक रहे , चावल का उपभोग न करे तथा भगवान विष्णु के रूपों की पूजा करे | 

लेखक;-एकादशी व्रत से ________रविकान्त यादव for more click me ;-http://justiceleague-justice.blogspot.in/  and https://www.facebook.com/ravikantyadava











Monday 2 April 2018

गंगा -पौराणिक कथा (complete story of the holy river ganga )


एक कथा  आती है ,विष्णु अवतार वामन , जब तीनो लोक पैर से नाप रहे थे  | तो   जब वह स्वर्गलोक  पहुचे तो ब्रम्हा ने अपने कमंडल के किसी जल से उनके पैरो को  धोया तो गंगा  का जन्म हुआ ||





एक कथा यह भी आती है , कि शिव का गाना सुनकर विष्णु पसीने पसीने हो गए उससे गंगा का जन्म हुआ | 

गंगा स्वभाव से चंचल व विनोदी थी , तथा साथ ही वह नृत्य व गायन में निपुण थी , एक बार स्वर्ग में जब सभी देवता उनका नृत्य देख रहे थे |  वहा महर्षि दुर्वासा  भी थे , जो थोड़े व अस्त -व्यस्त कपड़ो में थे , एक हवा के झोके से उनके वस्त्र उड़ गए , जिस पर सभी उनसे परिचित थे | वे अपना सिर घुमा लिए व शांत रहे , परन्तु गंगा हँस पड़ी , जिससे क्रोधित होकर दुर्वासा ने उन्हें शाप दिया कि तुम स्वर्ग में रहने लायक नहीं हो , जाओ तुम पृथ्वी पर नदी बन कर रहोगी | 



गंगा पृथ्वी पर नहीं आना चाहती थी , गंगा के क्षमा याचना करने पर ऋषि ने उन्हें धरती पर सबसे पुण्य पवित्र व पाप हरने व मोक्षदायिनी का वरदान दिया | 

राजा सगर भगवान राम व उनके पिता दशरथ  व भागीरथी  के पूर्व हुए थे , या इनके पहले हुए थे | 
उनकी कोई संतान न थी | तब उन्होंने अपनी दोनों रानिया केशनि व सुमति के साथ हिमालय पर जाकर पुत्र हेतु तपस्या किये तो ब्रम्हा के पुत्र महर्षि भृगु ने आकर रानियों  को इच्छा अनुसार वरदान दिया एक रानी को एक पुत्र का तथा दूसरी को इच्छानुसार 60 हजार परन्तु अभिमानी पुत्र पैदा होने का वरदान दिया ,| 
समय अनुसार पहली रानी को एक पुत्र हुआ तथा दूसरी रानी को एक कद्दू हुआ ,  जो जन्म के बाद फट गया राजा उस कद्दू को फेकने जाते है | तो आकाशवाणी होती है , राजा इन कद्दू के 60 हजार बीजो को घी व औषधीय जार में रखो तुम्हे 60 हजार पुत्र प्राप्त होगे | ( वर्तमान में शायद यही टेस्ट tube baby पद्धति हो ) 
समय अनुसार राजन को 60 हजार, सीधे एकदम  युवा पुत्र मिलते है || 

बाद में राजा सगर चक्रवर्ती होने के लिए अश्वमेध यज्ञ करते है , उनका यश प्रताप चारो दिशाओ में फ़ैल जाता है , उनके तप पराक्रम से देवराज इंद्र भी भयभीत हो जाते है | वे  अश्वमेध यज्ञ के घोड़े को अपने साथ ले जाते है , अचानक उन्हें कपिल ऋषि तपस्या करते दिखते है | बड़ी चोरी से वे घोड़े को कपिल ऋषि के आश्रम में बाध देते है | 

उधर राजा सगर के 60 हजार पुत्र घोड़े की खोज में आकाश- पातल एक कर देते है | अंत में घोडा उन्हें कपिल ऋषि के आश्रम में मिलता है | वे तपस्यारत कपिल ऋषि को चोर व न जाने क्या -क्या कह कर चिल्लाने लगते है | 

तमतमाए कपिल ऋषि अपनी आँखे खोलते है और  क्रोधाग्नि से 60 हजार सगर पुत्रो को जला कर भस्म कर देते है | कपिलमुनि के कोप से सगर के 60 हजार पुत्र धरती पर ही भटकने को बाध्य हो जाते है , उन्हें मुक्ति या स्वर्गलोक नहीं  जा सकते थे | 

जब यह बात सगर व उनके पौत्र अंशुमान को पता चली तो उन्होंने कपिल ऋषि की पूजा अर्चना  व बहुत स्तुति की तो कपिल ऋषि ने कहा चूँकि ये मेरे क्रोधाग्नि में भस्म हुए है , अतः इन्हे कोई अन्य नदी या जल से तारण मुक्ति नहीं मिल सकती , इसके लिए तुम्हे  स्वर्ग से गंगा नदी धरती पर लानी होगी | 



राजा सगर राजगद्दी अपने पौत्र अंशुमान को सौपकर गंगा को धरती पर लाने तपस्या करने चले गए परन्तु वे असफल रहे | 
फिर उनके पौत्र अंशुमान अपने पुत्र दिलीप को राजगद्दी सौप गंगा को धरती पर लाने की तपस्या पर चले गये ,परन्तु असफल रहे | 
फिर उनके पुत्र दिलीप भी तपस्या कर गंगा को  धरती  पर लाने  में असफल रहे , 


| तब दिलीप के पुत्र भगीरथ घोर तपस्या करते है , व ब्रम्हा प्रकट होकर कहते है , विष्णु पुत्री गंगा का वेग आकाश से धरती पर उतरने पर धरती सह नहीं पायेगी अतः इसके वेग को केवल शिव ही रोक सकते है | 
अतः इसके लिए शिव की तपस्या करो तब भागीरथ एक अंगूठे पर खड़े होकर विकट घोर शिव की तपस्या करते है | शिव , तपस्या से प्रसन्न होकर गंगा के वेग को रोकने के लिए तैयार हो जाते है | 



अतः गंगा स्वर्ग से सीधे घोर नाद व वेग से धरती पर उतरती है |  उनका लक्ष्य शिव को बहा देना होता है , परन्तु गंगा, शिव की  जटावो में उलझ कर रह जाती है |



शिव उनके वेग को थाम देते है | 
फिर शिव की जटा से सात (7 ) धाराए फूटती है | एक धारा भागीरथ के पीछे पीछे चलती है | 



चलते - चलते ऋषि जन्हु का आश्रम पड़ता है , वहा वे तप कर रहे थे , गंगा को ऋषि से उपहास सुझा उन्होंने उनके यज्ञ -आश्रम व अन्य सामग्री को  डुबो दिया , ऋषि की आँखे खुली तो अपने तपोबल से सब जान लिया व उन्होंने गंगा को पी लिया , गंगा जी अब ऋषि जन्हु के पेट में कैद हो चुकी थी , व चाहकर भी नहीं निकल सकती थी | 



 इधर जब भागीरथ जी ने पीछे मुड़कर देखा तो गंगा पीछे कही नहीं थी | 
वो दौड़े -दौड़े  गंगा को खोजते ऋषि जन्हु के आश्रम गए व ऋषि से माफ़ी व अनुनय विनय व आराधना किया तो ऋषि जन्हु   गंगा को कान से निकाल  कर आज़ाद कर किया | 




तब गंगा ने भी जीवन में  कभी शरारत नहीं करने का वचन दिया | तब से गंगा का एक नाम जान्हवी भी पड गया | फिर गंगा भागीरथी जी के पीछे -पीछे कपिल ऋषि के आश्रम तक गयी , जहा भागीरथी के 60 हजार पूर्वज राख बने पड़े थे | 
गंगा के स्पर्श से वे मुक्त होकर स्वर्ग चले गये | भागीरथ के इन्ही  कर्म को देखकर आज भी बहुत कठिन कार्य को भागीरथ प्रयास कहा जाता है | 
गंगा एक मात्र ऐसी पवित्र नदी है , जो आकाश ( स्वर्ग ) पाताल  , व धरती पर  एक साथ बहती है | 
माना जाता है , कलियुग की समाप्ति पर गंगा वैकुण्ठ धाम चली जाएगी | धरती  गंगा  से रिक्त हो (सूख ) जाएगी | 

with civil defence team
लेखक;- गंगा स्नान से ______ रविकान्त यादव for more click me ;-http://justiceleague-justice.blogspot.in/  and   https://www.facebook.com/ravikantyadava