Saturday 20 January 2024

ये जो जिंदगी है | (this is that life )

 

ये दुनिया बहुत बड़ी है , हर सेकंड २ लोग मर रहे है | अर्थात हर १ मिनट में १२० मर रहे है | युद्ध में ये संख्या बढ़ जाती है | फिर भी व्यक्ति ऐसे  जीवन जी रहा है ,ऐसे चाहते में लिप्त है | जैसे उसकी बारी आएगी ही नहीं , जैसे वो मरेगा ही नहीं | कह सकते है , मनुष्य जीने के लिए इतना मर रहा है ,कि अपने कुकर्मो का ध्यान ही नहीं | 

दो देश रूस और उक्रैन , इसराइल और हमास (फिलिस्तीन ) आपस में  ऐसे बर्बर युद्ध कर रहे है , जो जानवरो से भी बदतर है | मानवता शर्मसार है , जिसे बच्चे ,बूढ़े , महिलाये , मजलूम भुगत रहे है | 

 

जीवन में कोई मजदुर है , कोई किसान है , कोई संत है , कोई नौकर है ,कोई अफसर है , तो कोई व्यापारी है | 

पद ,प्रतिष्ठा , पैसा सब जीने के बहाने है | प्रेम , करुणा , शांति (मन की ) ही जीवन है | 

जिसमे इसका आभाव है , समझो उसने जीया ही नहीं  , उसका जीवन व्यर्थ है | 

 अपने स्वार्थ में आज व्यक्ति इतना लिप्त हो गया है ,कि जानवर हो गया है , उसे बस पैसा चाहिए ,| जिसे कलयुग में गौतम बुद्धा ने पहचाना और राजपाट छोड़  प्रेम ,करुणा , शांति  का मार्ग अपनाया | 

किसी को शिकायत है ,उसने दुनिया देखा ही नहीं | किसी को शिकायत है , उसने धन अर्जन ही नहीं किया | किसी को शिकायत है ,उसने संसाधन सुखो का भोग ही नहीं किया | किसी को शिकायत है ,उसने ज्ञान ही अर्जित नहीं किया | किसी को शिकायत है वह जीवन भर गरीब ही रहा | किसी  शिकायत है ,वह सब कुछ होते हुए भी पीड़ित रोगी ही रहा | किसी को शिकायत है ,वह सदा अभाव में ही रहा | किसी को शिकायत है ,जिंदगी समझने ,संघर्ष व लक्ष्य प्राप्ति में ही गुजर गयी | किसी को शिकायत है , वो सफल कैसे है ? मुझसे आगे कैसे निकल गया ?| किसी को शिकायत है , उसे समय ही नहीं मिला | 

 सभी को कुछ न कुछ की अभिलाषा है | और ये छोटी सी ज़िन्दगी कब जमीन पर पटक देती है ,पता ही नहीं चलता | यही  इच्छाएं पुनर्जन्म अवनति का कारण बनती है | 

ये दुनिया कुम्भ का मेला  है , भीड़ ही भीड़ है , सभी अपने स्वार्थ  महत्वकांक्षा में लिप्त है |

 बस, हम जहा भी रहे ,जिस भी हालात में रहे ,हमें ये सोचना चाहिए हम औरो से अलग है , और अपने कर्मो को ईश्वर के निम्मित सौपना चाहिए , लंका में रहकर भी विभिषण धर्मात्मा ही रहा | 

महाभारत युद्ध बाद धर्मराज युधिष्ठिर महात्मा विदुर को खोजते है , जो सन्यास लेकर वन में तपस्यारत थे | 

 युधिष्ठिर कहते है ,मुझे आपकी जरुरत है | आपके बिना मै  राजपाट  कैसे चलाऊगा , विदुर ने कहा, मै अपना शरिर त्याग  | मै अपनी आत्मा को तुम मे विलीन  कर रहा हु | मेरा ज्ञान व कुशलता तुम्हे मिल जाएगी | आज भी महात्मा ,धर्मात्मा ,कर्मयोगी होते है | जो योग्य व प्रिय व्यक्ति में विलीन हो जाते है | ये वही बात हुई आत्मा (सदआत्मा ) रूपी प्रकाश पुंज का परआत्मा में विलीन हो जाना | 



लेखक;- जिंदगी से ____रविकांत यादव 

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