* जीव में परमात्मा का वास होता है , अतः उसे कस्ट न दो , जान लेना आसान है , परंतु किसी की मदद , सुरक्षा जान बचाना व इज्जत करना बहुत कठिन ।
* तुम्हारे बुरे कर्म छिप न सकेंगे , चाहे तुम कितने भी चतुर हो ।
* ताज पहनने के काबिल वही है , जो उसे बनाने वाले का सम्मान करे उचे आसान पर बैठने का अधिकार उसी को है , जो मिटटी को छुए व वस्त्रो पर लगाने की काबिलियत रखे , क्यों सिंघासन की नींव मिट्टी ही है ।
*पुण्यात्मा वही है जो , निश्वार्थ है , चाहे वह राजा हो या रंक ।
* सेवाभाव व सद्व्यवहार से जग को जीता जा सकता है ।
* निंदा स्वयं की हानि है । ईर्ष्या आगे नहीं बढ़ने देगी ।
* हितैसी सज़्ज़न व बड़ो की आज्ञा स्वीकार करनी चाहिए ।
* कटु वचनों पर ध्यान न दो कटु वचन बोलने वाले का मुह स्वयं ही कडुवा होगा , वह स्वयं पाप का भागी बनेगा ।
* संतोष, सज़्ज़नो के लिए उतावलापन नहीं है ।
* सेवा परमात्मा सेवा है , इसमें चुके नहीं , पता न फिर अवसर मिले या न मिले या देर हो जाये ।
* एक भिखारी दरिद्र नहीं है , दरिद्र वह है जिसका संतोष , दया , दान , धर्म , ख़त्म हो चूका है ।
* उपकार व एहसान भूलने वाला जानवर तुल्य तुच्छ हो जाता है ।
* पूण्य व पाप ये वो कमाई है जो साथ जाती है , हमारा कोष हमारे अच्छे बुरे कर्म है ।
* स्वहित व कर्तव्य से बढ़कर है , समाजहित , दुसरो को लाभ मिले , राहत मिले ,ख़ुशी मिले, इसे नजर अंदाज़ न करे यही वास्तविक सफलता होगी ।
* अपने समूह ग्रुप को छोड़कर जाना तथा उन्हें नाराज़ करना आज के समय में दोनों हानिकारक है ।
अतः अनजान लोगो से सोचसमझ कर मिलो मित्रता करो ।
* धोखा आप दुसरो से नहीं स्वयं से करते है , आप के पतन का मार्ग व अक्षम्य अपराध है आप इसकी दुबारा भरपाई नहीं कर सकते ।
*मुसीबते हमारी परीक्षा है , संयम और ज्ञान इसका हल है ।
* अन्धविश्वास आपका वास्तविक ज्ञान व विश्वास भी नस्ट कर देता है ।
*ज्ञान किसी से भी ग्रहण किया जा सकता है चाहत नजरिया होना चाहिए ।
ज्ञान उच्च नीच में अंतर करना नहीं सिखाता ।
*वर्तमान थोड़ा लालच ,भविष्य का बड़ा दुःख है , लोक लुभावन सपनो से दूर रहे ।
* शक्तिओ का दुरूपयोग न करे इसे भलाई के प्रति प्रयोग करे ।
* कभी कभी हम बड़े बनने के प्रलोभन लिए अपने संस्कार को खो देते है , जिससे ज्ञान भी चला जाता है ।
विना ज्ञान, व्यक्ति , पशु व पक्षी भी निरंकुश हो जाते है ।
लेखक;- विचारक ______रविकान्त यादव for more click ;- https://www.facebook.com/ravikantyadava
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