हे भारत भूमि तुझे नमन , मैं तेरा क़र्ज़ कैसे उतारू तेरी ही फ़िज़ा में सांस लेता हु , उस हवा का क़र्ज़ कैसे उतारू ,
तेरी ही धरा से उत्पन्न अन्न खाता हु ,उसका क़र्ज़ कैसे उतारू ,
तेरी ही धरा पर आज़ादी से विचरण करता हु , तेरी ही धरा पर मिट्टी में लोटपोट होकर बड़ा हुआ हु अतः अहंकार कैसे करू , तेरे ही जल से कंठ को आत्मा को तृप्ति मिलती है उसका क़र्ज़ कैसे चुकाऊ ,
ये शरीर तेरा ही दिया हुआ है , तेरी ही धरा पर जन्म हुआ है , तुझसे ही मेरी काया है रक्त ,चर्म , अस्थिया , नेत्र , दिल -दिमाग , सब तुझसे ही है , अतः तेरे लिए प्राण ही क्यों न चले जाय , फिर भी क़र्ज़ नहीं चुक सकता ,
हे भारत भूमि तुझे शत शत नमन ।

लेखक ;- बन्दे मातरम _____रविकान्त यादव for more click me ;- https://www.facebook.com/ravikantyadava
and http://justiceleague-justice.blogspot.in/
तेरी ही धरा से उत्पन्न अन्न खाता हु ,उसका क़र्ज़ कैसे उतारू ,
तेरी ही धरा पर आज़ादी से विचरण करता हु , तेरी ही धरा पर मिट्टी में लोटपोट होकर बड़ा हुआ हु अतः अहंकार कैसे करू , तेरे ही जल से कंठ को आत्मा को तृप्ति मिलती है उसका क़र्ज़ कैसे चुकाऊ ,
ये शरीर तेरा ही दिया हुआ है , तेरी ही धरा पर जन्म हुआ है , तुझसे ही मेरी काया है रक्त ,चर्म , अस्थिया , नेत्र , दिल -दिमाग , सब तुझसे ही है , अतः तेरे लिए प्राण ही क्यों न चले जाय , फिर भी क़र्ज़ नहीं चुक सकता ,
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