१)एक ईस्ट इंडिया कंपनी भारत आयी और हम पर राज़ करके चली गयी , आज जून २०१४ तक कुल 3254 विदेशी कम्पनीया भारत में चल रही है , जरुरत है इन्हे कम करने की व इनके उत्पाद को देश में ही बनाना उत्पादित करने का लक्ष्य हो , ये कम्पनिया प्रचार ,विविधता व गुणवत्ता के नाम पर भारत में टिकी हुई है |
२) जब हम किसी देश या संस्था से कोई क़र्ज़ लेते है , तो साथ में उनकी नियम व शर्ते भी रहती है , जैसे ऋणदाता के समर्थित कंपनियों को आश्रय देना व इंटरेस्ट (व्याज )सहित भुगतान करना तथा अन्य जिम्मेदारिया , सेवाए, import , export आदि |
अब तक की सरकारे U.P.A. और N.D.A. दोनों ने ही विदेशी संस्थाओ व देशो से ऋण ले रखा है | शायद यह इसलिए कोई राजनितिक मुद्दा भी नहीं है , जरुरत है , इन ऋण को चुकता करना व शायद 25 पैसे 50 पैसे फिर से चलने लगेगे , आइये संक्षिप्त में जानते है ,ये पिछले 70 साल से ऋण कहा से कितना है , जब रुपया और डॉलर एक बराबर था |
३) 1 U.S. dollor = 64.32 पैसा (भारतीय रुपया में ) on १६/०२/2018
1 billion =100 crores
वही भारतीय रिज़र्व बैंक मार्च 2016 तक 485.6 बिलियन डॉलर विदेशी क़र्ज़ होने की बात कही है , जो साल दर साल 10.6 बिलियन डॉलर बढ़ता गया | कुल 485.6 *(गुने )100 =48560 करोड़ डॉलर |
48560 *(गुने)64.32 =3123379.2 करोड़ रूपये कुल क़र्ज़ है |
4) a ) अमेरिकी world bank से 104 billion डॉलर यानि 104 *100 = 10400 करोड़ डॉलर
b ) अमेरिकी (IBRD )international bank of reconstruction and development से 54 बिलियन डॉलर
यानी 54 *100 =5400 करोड़ डॉलर
c )अमेरिकी international development association (IDA ) से 50 बिलियन डॉलर यानि 50 *100 =5000 करोड़ डॉलर ||
कुल 20800 करोड़ डॉलर *64.32 = 1337856 करोड़ रूपये दिसंबर 2015 तक ऋण ले लिए गए है |
अतः ऋण लेते रहो घी पीते रहो की नीति सही नहीं है |
लेखक;- ऋणी _____रविकान्त यादव for more click me ;-http://justiceleague-justice.blogspot.in/
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