Friday 23 December 2016

ज्ञान की तुलना ( selfless work )

वीरभद्र आज भी रोज की तरह खेत से आया था , शरीर टूट रहा था , आते ही गुड़ पानी पी  कर खटिया पर पड गया  ,। 
तमाम उधेड़ बुन में सोच व शिकायत में सो गया , वैसे तो वीरभद्र भगवान  को बहुत ज्यादा नहीं मानता था । 
लेकिन आज उसे भगवान् से शिकायत थी , । कि मैं भी पढ़ा लिखा रहता तो पद प्रतिष्ठा रहती पैसे कमाता आदि आदि । 

भगवान् भी मानो गुरु की भाति आकर बोले सोचो तुमने अपने बेटे को पढ़ाया लिखाया व उचे पद पर आज वह विदेश में है ।  कब कब आता है,वह तुम्हारे पास २ - ३ साल में शायद एक बार आ जाये तो एहसान । 
वह भी अकेले वही जाकर शादी कर ली तेरा ४ साल का एक पोता है , दर्शन तक नहीं कराया , ऐसा ज्ञान व पैसा किस काम का । 
जरा सोचो मैकू के यहाँ शादी थी किसी ने उसे उधर तक नहीं दिया तुमने अपना खेत गिरवी रख कर उसे बैंक से पैसा दिलाया था ।


 
तुमने भट्ठे पर ईट ढोकर और मट्ठा पीकर अपने बेटे को पढ़ाया लिखाया । 
याद करो एक साल ओलावृष्टि से तुम्हारी फसले  तबाह हो गयी थी तो तुमने अपनी फसलो को अपने  गायो को
 खिला कर व उनका इलाज़ करा कर महीनो भर मट्ठे रोटी पर गुजरा किया । 
तुम बिना पढ़े लिखे हो कर भी तुम्हारा ज्ञान सच्चा और सार्थक है । 
वही तुम्हारा बेटा  पढ़ा लिखा होकर भी उसका ज्ञान स्वार्थी और निरर्थक है । इतना कुछ होते ही वीरभद्र की नीद खुल गयी , वह मुस्कुरा गया और करवट लेकर फिर चैन की नीद सोने लगा ॥ 

लेखक ;- स्वार्थी........रविकान्त यादव for more click me ;-justiceleague-justice.blogspot.com 
and facebook.com/ravikantyadava 




No comments:

Post a Comment