वीरभद्र आज भी रोज की तरह खेत से आया था , शरीर टूट रहा था , आते ही गुड़ पानी पी कर खटिया पर पड गया ,।
तमाम उधेड़ बुन में सोच व शिकायत में सो गया , वैसे तो वीरभद्र भगवान को बहुत ज्यादा नहीं मानता था ।
लेकिन आज उसे भगवान् से शिकायत थी , । कि मैं भी पढ़ा लिखा रहता तो पद प्रतिष्ठा रहती पैसे कमाता आदि आदि ।
भगवान् भी मानो गुरु की भाति आकर बोले सोचो तुमने अपने बेटे को पढ़ाया लिखाया व उचे पद पर आज वह विदेश में है । कब कब आता है,वह तुम्हारे पास २ - ३ साल में शायद एक बार आ जाये तो एहसान ।
वह भी अकेले वही जाकर शादी कर ली तेरा ४ साल का एक पोता है , दर्शन तक नहीं कराया , ऐसा ज्ञान व पैसा किस काम का ।
जरा सोचो मैकू के यहाँ शादी थी किसी ने उसे उधर तक नहीं दिया तुमने अपना खेत गिरवी रख कर उसे बैंक से पैसा दिलाया था ।
खिला कर व उनका इलाज़ करा कर महीनो भर मट्ठे रोटी पर गुजरा किया ।
तुम बिना पढ़े लिखे हो कर भी तुम्हारा ज्ञान सच्चा और सार्थक है ।
वही तुम्हारा बेटा पढ़ा लिखा होकर भी उसका ज्ञान स्वार्थी और निरर्थक है । इतना कुछ होते ही वीरभद्र की नीद खुल गयी , वह मुस्कुरा गया और करवट लेकर फिर चैन की नीद सोने लगा ॥


लेखक ;- स्वार्थी........रविकान्त यादव for more click me ;-justiceleague-justice.blogspot.com
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