Friday 23 December 2016

भटकती आस्था (wandering faith )

वर्तंमान समय में भगवान् के प्रति आस्था न होकर एक समझौता (deal )हो गयी है। 
एक व्यक्ति को घर के पीछे शिवालय में लगने वाली हजारो की भींड व रात में अँधेरा नहीं दिख़ता । 
वह सैकड़ो किलोमीटर दूर पैदल ही पैर में छाले लिए जल चढाने जरूर चला जायेगा ।

कुछ लोग  मांसाहारी भोजन  नहीं करते  , केवल सूप पीते है ।  कुछ लोग मांसाहारी नहीं खाते  केवल अंडा खाते है ।  कुछ लोग केवल मंगलवार और शनिवार को मीट नहीं खाते । 
कुछ लोग भगवान् को नहीं मानते फिर अचानक मानने लगते है । फिर साल दो साल बाद कपड़ो की तरह भगवान , लाकेट , शर्ते , मनौती , बदलते रहते है । 

और फिर जल्दी ही आस्था छोड़ पुनः उसी जीवन में चले जाते है । 


कुछ  पुरे जीवन सही गलत नहीं मानते  अपने मौज के लिए पैसे के लिए कुछ भी करो कही कोई नहीं होता फिर बुढ़ापे में जाकर ऐसी भक्ति करते है या ऐसा तथा कथित ढोंग करते है , मानो भगीरथ जी के बाद उन्ही का नंबर है । 

समझ में नहीं आ रहा है सहूलियत के हिसाब से  भगवान् है , या भगवान् के हिसाब से सहूलियत जिसे स्वार्थी मन कह सकते है । 
टोपी लगा लेने से या चुनरी ओढ़ लेने से कोई हिन्दू मुस्लिम नहीं हो जाता है । 
बल्कि वो एक ऐसा इंसान बन जाता है जो बम  बारूद मिसाइल से भी बढ़कर हो जाता है , मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना ॥ 
यदि व्यक्ति सत्य -धर्म -न्याय , अच्छाई -बुराई , में सोच समझ अंतर , जीवन  सदुपयोग , विवेक आचरण नहीं कर सकता तो धर्म और आस्था के प्रति दिखावा करने की कोई जरुरत नहीं है । 

लेखक;- आशासहित____रविकान्त यादव for more click me ;-http://justiceleague-justice.blogspot.in/
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