Friday 27 January 2017

देवव्रत ( the invincible )

देवी गंगा और शान्तनु के पुत्र देवव्रत , गंगा जन्म के साथ इन्हें लेकर चली गयी थी , इनके गुरु धरती के सभी महारथियों में पहले व भगवान  परशुराम जी है । 
शिक्षा अस्त्र शस्त्र पूर्ण होने पर किशोर होने पर गंगा ने पुनः इन्हें शांतनु को सौपा ,

एक बार राजा शांतनु का दिल सत्यवती पर आ गया , सत्यवती ने यह कहकर कि आपका एक पुत्र है , व राजपाट वही पुत्र भोगेगा अतः मेरा विवाह आपसे नहीं हो सकता ।

यह बात जब देवव्रत  ने सुना तो उन्होंने प्रतिज्ञा की मैं  आजीवन विवाह नहीं करुगा , और जो भी हस्तिनापुर की राजगद्दी का वारिश -धारक  होगा  उसकी सदैव रक्षा करुगा , इसी प्रतिज्ञा के बाद विजली चमकी और भीष्म नाम की आकाश वाणी हुई , तत्पश्चात उनका नाम देवव्रत से भीष्म हो गया । 
इस खबर को सुन उनके पिता शांतनु ने उन्हें इच्छा मृत्यु अर्थात अमरता तुल्य वरदान दिया । 
एक बार जब अम्बा ने भीष्म द्वारा परशुराम जी से अपमानित होने की शिकायत की उस वक़्त परशुराम अपने ही शिष्य से युद्ध को आये व युद्ध को कहा गुरु की आज्ञा से युद्ध हुआ ,
परशु राम धरती के महान योद्धा है , उनके पास सभी दिव्यास्त्र थे , युद्ध कई दिनो  तक चला  और अंततः भीष्म ने फिर भी अपने ही गुरु को हरा दिये  । 

महाभारत युद्ध में भीष्म ने पांडव सेना को तहस नहस कर दिया व कृष्ण को विवश कर उनकी प्रतिज्ञा भी तोड़वा दिया ,
कोई चारा न देख महाभारत में शिखंडी को उनके आगे कर जो पिछले जन्म में अम्बा थी , तब महिला देख पितामह ने सारे अस्त्र  शस्त्र त्याग दिए अर्जुन ने रोते रोते उन्हें  बाणों  से उन्हें बीध दिया । 
चूँकि पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान था व दुयोधन को भी युद्ध के अंत तक जीवित रहने का वचन दिया था अतः उन्होंने प्राण नहीं त्यागे । 


जब तक युद्ध ख़तम हुआ वो रणभूमि में दर्द व भीषण ठण्ड में पड़े रहे । 
तथा मकर संक्रांति उत्तरायण होने का इंतज़ार किया तथा माघ शुक्ल अस्टमी को जिसे भीष्मास्टमी भी कहते है , को स्वर्गारोहण किया । 

भीष्म पंचक जो कार्तिक में पड़ता है , एकादशी से गरुपुर्णिमा तक इस व्रत को ५ दिन कार्तिक के आखिर में किया जाता है ,निष्ठा  से  व्रत धारक को पुत्रप्राप्ति व पिछले जन्म के सभी पाप भी नस्ट हो जाते है । 
इसी पांच दिन पितामह ने पांडवो को ज्ञान दिया था , जिसे भीष्म पंचक कहा जाता है और कृष्ण के आशीष से इसे व्रत रूप में धारण किया जाता है ।

यदि यह संभव न हो तो गंगा स्नान के बाद या दीप दान करे  व गंगापुत्र भीष्म का नाम लेकर कि  हे गंगापुत्र भीष्म की माते तुम्हे शत शत  नमन अर्ध्य दे या स्नान करे इससे माता गंगा का भी आशीर्वाद मिलता है । 


लेखक;- भीष्म पितामह से प्रभावित ____रविकान्त यादव for more click me ;-https://www.facebook.com/ravikantyadava
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